Monday, March 26, 2018

देश नहीं चाहता एक और केजरीवाल पैदा हो

देश नहीं चाहता एक और केजरीवाल पैदा हो
देश नहीं चाहता एक और केजरीवाल पैदा हो समाजसेवी अन्ना हज़ारे के आंदोलन में इस बार भीड़ नहीं जुट रही है। रामलीला मैदान में आंदोलन के लिए हज़ारों तो क्या सैकड़ों लोग भी नहीं दिखाई दे रहे हैं। क्या अन्ना का जादू अब खत्म हो गया है या बात कुछ और है। आखिर क्या बात थी कि सात साल पहले देश के हर शहर से अन्ना के लिए आम नागरिक निकल आए थे लेकिन आज कोई हलचल नहीं। इस सवाल का जवाब सात साल पहले देश की तत्कालीन परिस्थितियों में छुपा बैठा है। जन लोकपाल विधेयक कानून की मांग को लेकर सन 2011 में अन्ना हज़ारे और उनके हज़ारों साथियों ने नई दिल्ली के जंतर-मंतर से एक बड़ा आंदोलन शुरू किया। ये कहा जा सकता है कि देश में व्याप्त निराशा के माहौल को भुनाने के लिए ये आंदोलन किया गया। लोग समर्थन देने लगे, घरों से बाहर निकलने लगे। एक लहर चल पड़ी। अन्ना एंड टीम को लगा कि वे देश में एक नव जागरण लाने जा रहे हैं। जबकि हकीकत कुछ और ही थी। 2004 और 2009 में कांग्रेस की वापसी के बाद देश में भ्र्ष्टाचार, तुष्टिकरण और आतंकवाद चरम पर था। देश निराशा से उबरना चाहता था लेकिन उसके सामने कोई विकल्प नहीं था। उस वक्त मोदी के आगमन की संभावनाएं नहीं बनी थी। ऐसे निराशा के माहौल में अन्ना हज़ारे जैसे व्यक्तित्व को देश की जनता ने हाथोहाथ लिया। देश कैसे भी कांग्रेस के चंगुल से निकलना चाहता था और अन्ना के रूप में उसे एक विकल्प नज़र आया था। उसके बाद जब नरेंद्र मोदी की एंट्री हुई तो अन्ना का अस्थायी प्रभाव खुद ब खुद समाप्त हो गया। आंदोलन से देश तो नहीं बदल सके लेकिन अरविंद केजरीवाल जैसे नेताओं का जन्म अवश्य हो गया। देश ने महसूस किया कि आंदोलन के नाम पर उनकी भावनाओं को कैश करवा लिया गया। आज रामलीला मैदान खाली इसलिए ही पड़ा है कि एक तो जनता मोदी पर भरोसा कर रही है , दूसरा अन्ना हज़ारे की विश्वसनीयता अब पहले जैसी नहीं रह गई है। आपकी पुकार पर देश दुबारा अपने घर से नहीं निकलने वाला। वह नहीं चाहता कि आपके असफल आंदोलन के गर्भ से फिर एक केजरीवाल पैदा हो जाए।


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